लाल बहादुर शास्त्री | Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay : हम आपको अपने आज के इस आर्टिकल में लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय कार्य, विचार और उनके संबंधित सभी ज्ञान आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। जो कि आपके ज्ञान और परीक्षा की दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण होगी।

दिखावा, पहनावा और सुंदरता यह सारी चीज कम ही दिनों के लिए होती है। लेकिन आपकी कीमत, लगन और चरित्र ही आपकी असली पहचान होती है। बहुत लोग सुंदरता को देखकर उनपर पर मोहित हो जाते हैं, और उन लोगों को छोड़ देते है। जिनका पहनावा अच्छा नहीं होते हैं, और जो दिखने में बहुत अच्छी नहीं होते है। लेकिन एक बात हमेशा याद रखें कि आपकी लगन, कठिन परिश्रम, सफलता और आपकी कीमत ही जीवन भर आपके साथ रहती है। ना कि आपकी सुंदरता, पहनावा और ना ही दिखावा।

आज हम बात करेंगे। एक ऐसे ही महान इंसान की जिनके सुंदरता और पहनावा का बहुत मजाक उड़ाया जाता था। जिसके चलते उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाना छोड़ दिया था। उनके कैबिनेट में भी बहुत मजाक उड़ाया जाता था । जी हां हम बात कर रहे है भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बारे में जिन्होंने अपनी सादगी, निष्ठा और कठिन परिश्रम से पूरे भारतवासी को अपने किए गए कार्य के लिए गर्व मेहसूस करवाया। और इनसे जुड़ी सारी जानकारियां इस लेख के माध्यम से आप लोगों को देने का प्रयास करेंगे तो कृपया इस लेख के अंत तक बने रहें।

Table of Contents

लाल बहादुर शास्त्री का संक्षिप्त जीवन परिचय

नामलाल बहादुर शास्त्री
जन्म2 अक्टूबर 1904
जन्म स्थानमुगलसराय, उत्तर प्रदेश
पितामुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव
मातारामदुलारी
भाई बहन3
जातिकायस्थ
शिक्षाग्रेजुएटेड
मृत्यु11 जनवरी 1966
नारा” जय जवान जय किसान “
Our Telegram ChannelClick Here to Join

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय | Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay Hindi Mein

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सटे मुगलसराय जिले में, साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव थे। जो एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षक थे। जिसे पहले के जमाने में मुंशी कहा जाता था। इसके बाद उनके पिता ने राजस्व विभाग में क्लर्क का नौकरी कर लिए। उनके माता का नाम रामदुलारी था। ये एक भाई और दो बहन थे। यह अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे। इसलिए इनको उनके परिवार वाले नन्हे कह कर बुलाते थे। जब शास्त्री जी डेढ़ साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया।

जो कि उनके परिवार वालों के लिए अत्यंत दुखद था। तब उनके मां ने उनको और उनके बहनों को लेकर उनके नाना हजारीलाल के घर मिर्जापुर आ गए। लेकिन कुछ दिन के बाद उनके नाना जी भी चल बसे। उनके नाना के जाने के बाद इनका परिवार का जिम्मा इनके मौसा जी रघुनाथ प्रसाद ने उठा लिया। इन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई मिर्जापुर के ही किसी प्राथमिक विद्यालय से पूरा किए। इसके बाद इन्होंने हरिश्चंद्र हाई स्कूल से अपने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरा किए थे।

उनको स्नातक की पढ़ाई के लिए इनको वाराणसी उनके चाचा के पास भेज दिया गया। वाराणसी में उन्होंने काशी विद्यापीठ से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरा किए। इसके बाद इनको काशी विद्यापीठ द्वारा शास्त्री का उपाधी दिया गया जिसके बाद इन्होंने जन्म से चलते आ रहे जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिऐ हटा दिया, और और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिए और तब से यह लाल बहादुर शास्त्री कहलाने लगे। सन 1928 में इनका विवाह इनके ननिहाल मिर्जापुर के ही गणेश प्रसाद की पुत्री से हो गई। जिनका नाम ललिता देवी था इनको छः संतान हुए जिनमें दो पुत्री और चार पुत्र थे।

लाल बहादुर शास्त्री का परिवार | Lal Bahadur Shastri Family

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay : लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 1904 में एक साधारण हिंदू कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था। उनके पिता एक प्राथमिक स्कूल में बच्चों को पढ़ते थे। इसलिए उन्हें मुंशी कह कर बुलाया जाता था। इसके बाद मुंशी जी इलाहाबाद की राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी करने लगे। उनके माता का नाम रामदुलारी श्रीवास्तव था। जो एक कुशल गृहणी थे। उनके दो बहने थे जो इनसे बड़ी थी।

जिनका नाम कैलाशी देवी और सुंदरी देवी थी। जब शास्त्री जी डेढ़ वर्ष के थे। तब उनके पिता का देहांत हो गया। उसके बाद उनके मां अपने तीनों बच्चों को लेकर अपने पिता हजारीलाल के घर आ गए। इनका बचपन इनके ननिहाल में ही बीता। इनका शादी सन् 1928 में 24 वर्ष की उम्र में ललिता देवी से हो गया। ललिता देवी उनके ननिहाल मिर्जापुर के ही रहने वाली थी। इनसे इनको 6 बच्चे हुए। जिनमें चार बेटे अनिल शास्त्री, सुनील शास्त्री, हरि कृष्ण शास्त्री और अशोक शास्त्री थे।

उनके दो बेटियां भी थी। जिनका नाम कुसुम शास्त्री और सुमन शास्त्री थी। उनके चार पुत्रों में दो पुत्र अभी भी जिंदा है बाकी के दो पुत्र दिवगंत हो चुके हैं। उनके बेटे जो अब अभी जिंदा है। अनिल शर्मा जो कांग्रेस पार्टी की एक वरिष्ठ नेता और दूसरा बेटा सुनील शास्त्री जो भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं।

लाल बहादुर शास्त्री की शिक्षा | Lal Bahadur Shastri Education

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay

लाल बहादुर शास्त्री ने अपने स्कूल की पढ़ाई 4 वर्ष के उम्र से ही शुरू कर दिए थे। इन्होंने मिर्जापुर के किसी प्राथमिक विद्यालय से अपनी छठवीं तक की पढ़ाई किए। इसके बाद इन्होंने हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में दाखिला लिया, और अपने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरा की। शास्त्री जी अपने जीवन में बहुत गरीबी की मार खाए हुए हैं। जब यह स्कूल में थे तब इनको स्कूल जाने के लिए गंगा नदी को पार करना होता था, और इनको नाव से नदी पार करने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे।

तब यह नदी को तैरकर पार किया करते थे। सिर पर बस्ता और कपड़ा रख कर लंबी गंगा नदी को पार करके पढ़ने जाते थे। स्कूल में मेधावी होने के कारण इनको स्कॉलरशिप के रूप में तीन रुपए मिला करता था। और जब यह हाई स्कूल में थे। तब कई किलोमीटर नंगे पांव चलकर हाई स्कूल जाते थे, और आते थे। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद इनको स्नातक की पढ़ाई के लिए वाराणसी उनके चाचा के पास भेज दिया जाता है।

वाराणसी के काशी विद्यापीठ से दर्शन और नैतिक शास्त्र में स्नातक की उपाधि लेने के बाद इसको काशी विद्यापीठ लाल बहादुर शास्त्री के गुरु कौन थेरा शास्त्री की उपाधि दिया गया। जिसके बाद उन्होंने जन्म से चलते आ रहे जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव को हमेशा के लिए हटाकर अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिऐ। तब से इन्हें लोग लाल बहादुर शास्त्री के रूप में जानने लगे।

लाल बहादुर शास्त्री के गुरु कौन थे? |Lal Bahadur Shastri ke guru kaun The?

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay : लाल बहादुर शास्त्री की बचपन से ही बहुत तेज बुद्धि के थे। वह सभी से काफी अलग थे। यह हमेशा अपने सादगी, निष्ठा और दृढ़ संकल्प के लिए जाने जाते थे। शास्त्री जी महात्मा गांधी जी के राजनीतिक शिक्षा से अत्यंत प्रभावित थे। इसलिए इनको अपना गुरु मानते थे। जिन्होंने अपने गुरु महात्मा गांधी के ही तरीके से उन्होंने एक बार कहा था। “मेहनत प्रार्थना करने का सम्मान है”। गांधी जी की तरह विचार रखने वाले शास्त्री जी भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान है।

शास्त्री जी गांधी जी से असहयोग आंदोलन के दौरान मिले थे। यह आंदोलन 1 अगस्त 1920 में गांधी जी द्वारा चलाया गया था। और बाद में इस आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को इस प्रस्ताव को पारित किया गया था। इस दौरान शास्त्री जी को जेल भी जाना पड़ा था। इन्होंने गांधी जी के साथ मिलकर कई आंदोलन किया। जिसमें असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन भी शामिल है।

लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी | Lal Bahadur Shastri Aur Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर जिले में काठियावाड़ गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था। जो ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत के दीवान थे। इनके माता का नाम पुतलीबाई गांधी थी, जो एक गृहणी थीं। इनका पूरा नाम मोहनदास कर्मचंद गांधी था।

लाल बहादुर शास्त्री जब दसवीं क्लास में थे। तब उन्होंने गांधी जी के एक भाषण को सुना जिसे वह काफी प्रभावित हुए। महात्मा गांधी जी ने छात्रों से अपील किया की वह सरकारी स्कूलों से अपना नाम वापस लें ले। और गांधी जी द्वारा चलाए जा रहा असहयोग आंदोलन में भाग ले। गांधी जी के इस भाषण से काफी प्रभावित होकर शास्त्री जी ने हरिश्चंद्र हाई स्कूल से अपना नाम वापस ले लिया। इसके बाद इन्होंने सक्रियता से देश के असहयोग आंदोलन में हिस्सा ले लिया। जिनके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। हालांकि छोटे होने की वजह से उन्हें जल्दी छोड़ भी दिया गया।

शास्त्री जी एक सच्चे गांधीवादी थे, और उनके विचारधारा पर चलने वाले इंसान थे। गांधी जी के नेतृत्व में उन्होंने कई आंदोलन में हिस्सा भी लिए थे। जिनके चलते ने कई बार जेल भी जाना पड़ा था। इसके बाद 1930 में महात्मा गांधी जी द्वारा चलाया गया। दांडी मार्च यात्रा में भाग लिया। इस यात्रा ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी थी। शास्त्री जी ने अपने पूरे ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हुए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया। जिसके वजह से इन्हें 7 वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में भी रहना पड़ा था। इनके बाद इन्होंने गांधी जी द्वारा चलाया गया 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड को बुरी तरह से हराते हुए देख नेताजी ने आजाद हिंद फौज को “दिल्ली चलो” का नारा दिया था। गांधी जी मौके का फायदा उठाते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में ही मुंबई से अंग्रेजों को “भारत छोड़ो” और “करो या मरो” का आदेश दे दिया। और सरकारी सुरक्षा में यर्वदा महाराष्ट्र में पुणे स्थित आगा खान पैलेस आ गए। 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्री जी ने इलाहाबाद पहुंचकर इस नारे को चतुराई पूर्वक बदलकर “मरो नहीं मारो” कर दिया। और अचानक से यह क्रांति पूरे देश में प्रचंड रूप ले लिया। यह क्रांति 11 दिन तक चला इस आंदोलन के बाद 19 अगस्त 1942 को इनको गिरफ्तार कर लिया गया।

लाल बहादुर शास्त्री के राजनैतिक जीवन

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay : लाल बहादुर शास्त्री अपने गुरु महात्मा गांधी जी से प्रेरित होकर राजनीतिक में शामिल हो गए। जनवरी 1921 में बनारस में महात्मा गांधी और पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा एक आयोजित सभा में हिस्सा लिया। जब वें अपनी दसवीं क्लास के परीक्षा के 3 महीने ही दूर थे। तब कांग्रेस पार्टी द्वारा चलाया गया असहयोग आंदोलन में स्वयंसेवक के रूप में हिस्सा लिए थे।

उन्होंने अपनी पढ़ाई को बंद करके राजनीतिक में शामिल हो गए। गांधी जी के शिक्षाओं के अनुसार उन्होंने लाला लाजपत राय की “सर्वेंट ऑफ द पीपल” समिति के सदस्य के रूप में हरिजनों की जिंदगी को अच्छा बनाने के लिए काफी संघर्ष किया। उनके लिए उन्होंने गांधी मार्गदर्शन में मुजफ्फरपुर में काम करना शुरू कर दिए थे। इसके बाद में ये समिति के अध्यक्ष पद तक पहुंच गए।

राज्य मंत्री:

शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश में संसदीय सचिव के रूप में चुना गया था। रफी अहमद किदवई को केंद्र में मंत्री बनने के लिए चले जाने के बाद 15 अगस्त 1947 में पुलिस और परिवहन मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने परिवहन मंत्री के रूप में महिला कंडक्टरों की नियुक्ति करने वाले पहले मंत्री बने थे। पुलिस विभाग के प्रभारी मंत्री के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने पुलिस द्वारा भीड़ से हटाने के लिए लाठियों की जगह पर पानी का बौछार करने के लिए आदेश दिए।

कैबिनेट मंत्री:

लाल बहादुर शास्त्री जी को सन 1951 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव नियुक्त किया गया था। उस समय नेहरू जी राज्य के प्रमुख थे। जो 1952, 1957 और 1962 में भारतीय आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत के लिए खास थे। उन्होंने 1952 में फूलपुर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र यूपी के लिए 69 परसेंट से अधिक वोट से जीते थे। उत्तर प्रदेश के गृह मंत्री के रूप में अपना सीट बरक़रार रखने के लिए सोचा गया।

इसके बाद नेहरू जी उन्हें अचानक से एक मंत्री के रूप में केंद्र में बुलाया और इसके बाद 13 मई 1952 को शास्त्री जी को भारतीय गणराज्य के प्रथम मंत्रिमंडल में रेल और परिवहन मंत्री बना दिया गया। 1959 में वह वाणिज्य और उद्योग मंत्री भी बने, और 1961 में गृह मंत्री भी बने। बिना किसी विशेष पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में काम करते हुए उन्होंने 1964 में बेंगलुरु बंदरगाह की स्थापना किये।

प्रधानमंत्री:

शास्त्री जी को साफ सुथरी पहचान के कारण ही उन्हें 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। इन्होंने अपने पहलेसंवद्दाता सम्मेलन में कहा था, कि उनकी पहली जिम्मेवारी खाद्यान्न के मूल्य बढ़ने से रोकना है, और इन्होंने ऐसा करने में सफल भी हुआ। उनके काम सैद्धांतिक ना होकर पूर्ण रूप से व्यावहारिक और जनता की आवश्यकता के अनुकूल था। निस्वार्थ अगर देखे तो इनका शासन काल बहुत कठिन रहा, क्योंकि पैसे वाले देश पर हावी होना चाहते थे, और दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने के योजना बना रहे थे। अचानक 1965 में पाकिस्तानियों ने भारत पर संध्या 7:30 बजे हवाई हमला कर देते हैं।

उसके बाद नियमानुसार राष्ट्रपति ने एक आपातकाल बैठक बुलाते हैं। जिनमें तीनों सुरक्षा के अंगों के प्रमुख और मंत्रिमंडल के सदस्य भी शामिल थे। संयोग से उस बैठक में शास्त्री जी थोड़ा देर से पहुंचे थे। उनके आते हैं तीनों प्रमुखों ने उनसे सारी बातें समझाते हुए पूछा “सर”। क्या हुक्म है ? उन्होंने एक वाक्य में तुरंत उत्तर दिया और बोले आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है। इस युद्ध में नेहरू जी के मुकाबले देश को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया, और “जय जवान जय किसान” का नारा दिया। इससे भारतीय जनता का मनोबल काफी बढ़ गया, और सब एकजुट हो गया।

जिसकी कल्पना पाकिस्तानियों ने सपने में भी नहीं किए होंगे। भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान 6 सितंबर को भारत की 14 वीं पैदल सैनिक बटालियन ने अनुभवी मेजर जनरल के नेतृत्व में इच्छोगिल नहर के पश्चिमी किनारे पर पाकिस्तानियों द्वारा किया गया बड़े हमले का डटकर मुकाबला किए। ये नहर भारत और पाकिस्तान के वास्तविक सीमा थी। इस हमले में मेजर जनरल प्रसाद के बटालियन पर जबरदस्त हमला हुआ और जिनके कारण उन्हें अपना वाहन छोड़कर पीछे हटना पड़ा था।

लेकिन भारतीय थल सेना ने अपनी दोगुनी शक्ति से बढ़कर बड़की गांव के पास नहर को पार करने में सफल रहे। इसके चलते भारतीय सेना ने लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करके सीमा में प्रवेश कर गए। इस अचानक हमले से घबराकर अमेरिका ने अपने देशवासियों को लाहौर से निकलने के लिए कुछ समय के लिए युद्ध रोकने के लिए अपील की।

रूस और अमेरिका के बनाया गया योजना के तहत शास्त्री जी पर जोर डाला गया। इनको एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया। इस प्रस्ताव को उन्होंने स्वीकार कर लिए, हर समय उनके साथ जाने वाले उनकी पत्नी ललिता देवी को बहला फुसलाकर कर नहीं जाने के लिए मना लिया गया, कि वह उनके साथ ताशकंद समझौते पर रूस न जाए, और वह मान गई। अपनी इस भूल पर ललिता शास्त्री को हमेशा पछतावा रहा। यह समझौते में युद्ध विराम और जीती हुई पाकिस्तानी जमीन को लेकर यह समझौता किया गया था। शास्त्री जी क एक ही जिद्द था, कि उनको सारे शर्तें मंजूर है, पर जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज मंजूर नहीं है।

लेकिन शास्त्री जी पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बना कर ताशकंद समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवा लिया गया। वे जब हस्ताक्षर कर रहे थे। तब उन्होंने बोले कि वह हस्ताक्षर तो कर रहे हैं। लेकिन यह जमीन कोई दूसरे प्रधानमंत्री ही लौटाएंगे वह खुद नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध विराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद 11 जनवरी 1966 के रात में उनकी मृत्यु हो गई। जो कि आज तक रहस्य बना हुआ है की क्या सच में उनकी मृत्यु हार्ट अटैक से हुआ है। कई लोगों का मानना है, कि इनको खीर में जहर देकर मारा गया है। इस मामले की खोज अभी तक चल रहा है।

शास्त्री जी को सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के चलते आज भी पूरा भारत देश श्रध्दा पूर्वक याद करते हैं। उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु | Lal Bahadur Shastri Ki Mrityu

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay : रूस और अमेरिका के बनाया गया योजना के तहत शास्त्री जी पर जोर डाला गया। इनको एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया। इस प्रस्ताव को उन्होंने स्वीकार कर लिए। हर समय उनके साथ जाने वाले उनकी पत्नी ललिता देवी को बहला फुसलाकर कर नहीं जाने के लिए मना लिया गया, कि वह उनके साथ ताशकंद समझौते पर रूस न जाए, और वह मान गई। अपनी इस भूल पर ललिता शास्त्री को हमेशा पछतावा रहा। यह समझौते में युद्ध विराम और जीती हुई पाकिस्तानी जमीन को लेकर यह समझौता किया गया था।

शास्त्री जी क एक ही जिद्द था, कि उनको सारे शर्तें मंजूर है। पर जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज मंजूर नहीं है। लेकिन शास्त्री जी पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बना कर ताशकंद समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवा लिया गया। वे जब हस्ताक्षर कर रहे थे। तब उन्होंने बोले कि वह हस्ताक्षर तो कर रहे हैं। लेकिन यह जमीन कोई दूसरे प्रधानमंत्री ही लौटाएंगे वह खुद नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध विराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद 11 जनवरी 1966 के रात में उनकी मृत्यु हो गई। जो कि आज तक रहस्य बना हुआ है की क्या सच में उनकी मृत्यु हार्ट अटैक से हुआ है।

कई लोगों का मानना है कि इनको खीर में जहर देकर मारा गया है, इस मामले की खोज अभी तक चल रहा है। ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद 11 जनवरी 1966 के रात उनकी मृत्यु हो गई। जिसका कारण दिल का दौरा बताया गया, शास्त्री जी को पूरे राजकीय सम्मान के साथ शांतिवन के आगे यमुना नदी के किनारे जलाया गया। इस जगह को विजय घाट नाम दिया गया। जब तक कांग्रेस पार्टी ने नया प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को विधिवत रूप से उत्तराधिकारी नहीं चुन लिया।

तब तक के लिए गुलजारीलाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया। शास्त्री जी के मृत्यु को लेकर लोग तरह-तरह के बातें बनाने लगे बहुत लोग का कहना था। जिनमें उनके परिवार वाले लोग भी शामिल थे। उनका कहना था कि उनका मृत्यु दिल का दौरा परने से नहीं बल्कि जहर देने से हुआ है। राज नारायण ने पहले इंक्वारी करवाया जो बिना कोई नतीजा का समाप्त हो गया।

इनका रिकॉर्ड पार्लियामेंट लाइब्रेरी में भी मौजूद नहीं है। यह भी आरोप लगा था कि शास्त्री जी के शरीर का पोस्टमार्टम भी नहीं किया गया था। 2009 में यह सवाल उठाया गया था, तब भारत सरकार ने कहा था कि प्राइवेट डॉक्टर आर० एन० चुघ और कुछ रूस की डाक्टरों ने मिलकर उनकी मृत्यु की जांच तो किए थे। परंतु सरकार के पास उनका कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है। बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय से जब उनकी जानकारी मांगी गई तो उसने भी अपनी मजबूरी जताई।

लाल बहादुर शास्त्री का समाधि स्थल

लाल बहादुर शास्त्री का समाधि स्थल दिल्ली में स्थित शांतिवन में है। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री शास्त्री जी की मृत्यु ताशकंद समझौते के बाद हुआ था। जिसके बाद पूरे देश में इनके मृत शरीर को श्रद्धा पूर्वक यमुना के किनारे जवाहरलाल नेहरू की समाधि स्थल से आगे जलाया गया था। और इस जगह को विजय घाट स्थल नाम दिया गया।

जो अभी भी दिल्ली के शांति वन में स्थित है। विजय का मतलब जीत है और उनके स्मारक का नाम उस जीत के नाम पर रखा गया था। जिन्होंने 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ भारत का नेतृत्व किया था। उनके जन्म और मृत्यु वर्ष के अवसर पर हर साल प्रार्थना की जाती है, और इस महान व्यक्ति के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रध्यक्ष व्यक्ति उनके समाधि स्थल विजय घाट पर जाते हैं।

लाल बहादुर शास्त्री को भारत रत्न कब मिला? | Lal Bahadur Shastri Ko Bharat Ratna Kab Mila Tha?

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay : भारत रत्न देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। भारत रत्न 2 जनवरी 1954 में अस्तित्व में आया था। यह पुरस्कार वैसे व्यक्ति को दिया जाता है, जो साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवाओं और कला के क्षेत्र में असाधारण प्रदर्शन करते हैं। यह पुरस्कार महिला पुरुष सभी के लिए होता है। यह पुरस्कार राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है।

हर साल अधिकतम तीन नामांकित व्यक्तियों को यह पुरस्कार दिया जाता है, और इसके लिए सिफारिश विशेष रूप से प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति से किया जाता है। ऐसे में शास्त्री जी को 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। जो मरणोपरांत सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति थे। शास्त्री जी को सादगी, देशभक्ति, ईमानदारी और दृढ़ संकल्प के चलते आज भी पूरा भारत देश श्रद्धा पूर्वक इन्हें याद करते हैं।

ये भी पढ़े।

समय का सदुपयोग पर निबंध | Samay Ka Sadupyog Nibandh In Hindi

लाल बहादुर शास्त्री के नारा | Lal Bahadur Shastri Ka Nara

लाल बहादुर शास्त्री जी एक महान नेता थे। उन्होंने अपने जीवन में कई नारे दिए। उनके नारे आज भी भारत में लगाया जाता है। उनके नारे हमें प्रेरणा देती है, और हमें बताते हैं कि बेहतर दुनिया बनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए।

” जय जवान जय किसान “

यह नारा शास्त्री जी ने तब दिया था जब 1965 में भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ था। यह नारा देश की रक्षा करने वाले जवानों और देश के खाद्यान्न पूर्ति के लिए काम करने वाले किसानों के लिए सम्मान व्यक्त करने के लिए दिया गया था।

” जबतक दुनियां में एक भी भूखा व्यक्ति है। तब तक मेरा काम पूरा नहीं हुआ है।”

शास्त्री जी द्वारा दिया गया या नारा हमें एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करता है। यह हमें बताता है कि अपने आसपास के लोग को मदद करें और एक ऐसी दुनिया बनाये जहां कोई भूखा ना रहे।

” मरो नहीं मारो “

शास्त्री जी का यह नारा हमें यह सिखाता है, कि हमें किसी भी काम से हार नही मानना है। बल्कि उस काम को अपने मेहनत और लगन से करके हराना हैं।

” एकता में शक्ति “

शास्त्री जी का या नारा हमें सिखाता है, कि एकता में ही बल होता है, और एक साथ काम करने और एकजुट रहने से हम एक मजबूत राष्ट्र बना सकते हैं।

लाल बहादुर शास्त्री के विचार | Lal Bahadur Shastri Ke Vichar

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay

लाल बहादुर शास्त्री के विचार यह बताता है कि, अगर सच्चा लोकतंत्र और स्वराज चाहिए। तो अहिंसा और सत्य की रास्ते पर हमेशा चलना चाहिए ना कि हिंसा और असत्य के रास्ते पर। हमारी ताकत और मजबूती के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। हमें एकता बनाकर रखना होगा। हमें सिर्फ खुद के लिए नहीं बल्कि हमेशा पूरे विश्व की शांति, विकास और कल्याण में विश्वास बनाकर रखना होगा।

लाल बहादुर शास्त्री के जीवन से हमे क्या सिख मिलती है ?

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay : लाल बहादुर शास्त्री के जीवन से हमें यह सीख मिलती है, कि हमें अपने जीवन सादगी पूर्ण से बिताना चाहिए। हमारे सुंदरता और पहनावा हमें हमारी पहचान नहीं दिलाता है। बल्कि हमारी लगन, निष्ठा और कठिन परिश्रम ही हमारी पहचान दिलाती है। अगर आप किसी काम को कर रहे हो। तो, आप उसको पूरे निष्ठा और मेहनत से करें तभी आपको सफलता मिलेगी। अगर हमें दुनिया जीतना है। तो, हमेशा आपको सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए। तभी आप दुनिया जीत सकते हैं। उनके जीवन से यह भी सीख मिलता है कि, हमें हमेशा दूसरों की मदद करना चाहिए, किसी भी इंसान से भेदभाव नहीं करना चाहिए।

Frequently Asked Questions

क्या लाल बहादुर शास्त्री को भारत रत्न मिला है?

लाल बहादुर शास्त्री जी को 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

लाल बहादुर शास्त्री दिवस कब मनाया जाता है?

2 अक्टूबर

लाल बहादुर शास्त्री का दूसरा नाम क्या था?

लाल बहादुर शास्त्री का दूसरा नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था।

लाल बहादुर शास्त्री कितने पढ़े थे?

ग्रेजुएटेड

उम्मीद करता हूँ कि हमारे इस आर्टिकल की सहायता से लाल बहादुर शास्त्री से जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त हो गयी होगी। इस तरह की जीवन परिचय या और सभी जानकारी के लिए Suchna Kendra से जुड़े रहे।

Share This Post:

Leave a Comment