सुभाष चंद्र बोस | Netaji Subhash Chandra Bose Par Nibandh

नमस्कार दोस्तों। मैं अपने आज के इस आर्टिकल में आप सभी को एक महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बारे में बताऊंगी और साथ ही सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध Subhash Chandra Bose Par Nibandh भी बताऊंगी। जो की वर्ग 1 से वर्ग 12 तक और आज के समय में जितने भी प्रतियोगी परीक्षाएं होती है, इन सभी दृष्टियों से बहुत महतवपूर्ण है।

तो आइए जानते है सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध।

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सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध | Netaji Subhash Chandra Bose Par Nibandh Hindi Me

सुभाष चंद्र बोस जिन्हे भारत के सभी छोटे बड़े राज्य और सभी छोटे बड़े शहरों में नेताजी के नाम से जाना जाता है। बचपन से ही इनके अंदर देश के प्रति देशभक्ति और एक आदर्श व्यक्ति और एक महान नेता की छवि देखने को मिलती हैं। ये एक ऐसे महान नेता थें। जिनकी विचारधारा काफी प्रभावशाली रही हैं। इन्होंने भारत को न केवल राजनीतिक्ति छेत्र में ऊपर उठाया है, बल्कि भारत जो की कई वर्षो से अंग्रेज़ी हुकुमत की गुलाम बनी हुई थी। उसे अंग्रेजो से आजाद कराने में कई सारे योगदान और कार्य किए है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दुसरान अंग्रेजो से लड़ने के लिए जापान की सहायता से “आजाद हिन्द फौज का गठन किया था”

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ये स्वामी विवेकानंद के विचार से काफी प्रभावित हुवे थे और इसी कारण इन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मान लिया था। गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में सुभाष घई बोस ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। देश की रक्षा और देश के खातिर ये कई बार जेल भी गए है। इनपे कई बार लाठी चार्ज भी किया गया। परंतु ये अपने कर्तव्य से कभी पीछे नहीं हटे और अपने सुभाष चंद्र बोस ने अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया।

सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध 1000 शब्दों मे | Netaji Subhash Chandra Bose Par Nibandh 1000 Words Mein

Netaji Subhash Chandra Bose Par Nibandh 1000 Words Mein

प्रस्तावना :

“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा”

सुभाष चंद्र बोस एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। ये एक महान युवा नेता थे। जिन्होंने सभी के अंदर अपने देश के लिए प्रेम की जिज्ञासा जागरुक कर दी थी। नेताजी ने देश की आजादी के लिए सभी को एक बुलंद आवाज दे दी थी, और कहा था बोलो “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दुंगा” अर्थात अगर हमें हमारे आजादी के लिए खून भी बहाना पड़ा तो हम बहाएंगे। कभी भी इसे पीछे नहीं हटेंगे।

सुभाष चंद्र बोस के इस नारे से बहुत सारे लोगों के अंदर जोश आ गया था। और कई लोगों ने इन्हें अपने खून से पत्र लिखकर भी भेजा था। ऐसे ही थे सुभाष चंद्र बोस जिन्हें युवा नेता अर्थात नेताजी कहा जाता था। यह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में कहियो योगदान दिए हैं।

जन्म और पारिवारिक जीवन :

सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध, (Subhash Chandra Bose Par Nibandh) में हम सुभाष चंद्र बोस के जन्म और इनके परिवारिक जीवन की बात करे तो, सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 ईस्वी को हुआ था। सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ जाति में हुवा था। सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम जानकी नाथ बोस था और इनकी मां का नाम प्रभावती था।

सुभाष चंद्र बोस के पिता उड़ीसा के कटक शहर के जाने माने वकील थें। और इनकी मां एक कुशल गृहणी थे। सुभाष चंद्र बोस के कुल 14 भाई बहन थे। जिनमे से 8 भाई और 6 बहन थें। सुभाष चंद्र बोस अपने माता पिता की नवीं संतान थें। सुभाष चंद्र बोस का अपने दूसरे स्थान वाले भाई शरद बाबू से बहुत लगाव था।

शिक्षा :

सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थें। सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध में हम अगर इनकी शिक्षा से जुड़ी बात करें तो, ये पढ़ाई लिखाई में इनकी रुचि बचपन से ही बहुत थीं। इसी कारण सुभाष चन्द्र बोस हर परिक्षा ने अच्छे अंक से उत्तीर्ण हुए थें। सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्राथमिक शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेंट स्कूल से पूरी की थी। उसके बाद की पढ़ाई के लिए इन्होंने रेवेंशा कॉलीजियेट में दाखिला करवाया था। कॉलेज के प्रिंसिपल बेनी माधव दास के व्यक्तित्व का सुभाष चंद्र बोस पर काफी प्रभाव पड़ा था।

सुभाष चंद्र बोस ने महज 15 वर्ष के उम्र में स्वामी विवेकानंद के साहित्यि का पूरा अध्ययन किया था। सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद के विचार से काफी प्रभावित हुए। और इन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मान लिया। सन् 1915 में सुभाष चंद्र बोस काफी बीमार पड़ गए थे, और बीमार रहने के बावजूद भी, सुभाष चंद्र बोस ने 1915 में अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा द्वितीय स्थान से उत्तीर्ण कि थी। फिर 1916 ईस्वी में सुभाष चंद्र बोस ने अपनी बीए की परीक्षा पूरी करने के लिए philosophy अर्थात दर्शनशास्त्र ऑनर्स से कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया।

अतः कठिन मेहनत और प्रयास से, उन्होंने कोलकाता के स्कॉटिश कॉलेज से philosophy अर्थात दर्शनशास्त्र ऑनर्स के साथ अपनी बी॰ ए॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की। और कोलकाता विश्वविद्यालय में दूसरे स्थान पर आए थे। इसी कॉलेज में एक अंग्रेजी प्रोफेसर द्वारा भारतीयों को सताया जाता था और इसे देख सुभाष चंद्र बोस भारतीयों को सताए जाने पर इसका काफी विरोध किया करते थे। उसे समय जातिवाद का मुद्दा बहुत उठाया जाता था। यही वह पहले दौर था जब से नेताजी सुभाष चंद्र बोस के मन में अंग्रेजों के खिलाफ जंग की शुरुआत हुई थी।

सुभाष चंद्र बोस के पिता की एक साथी की उनका पुत्र आईसीएस बने। अतः अपने पिता की इच्छा को पूर्ण करने के लिए सुभाष चंद्र बोस 15 सितंबर 1919 को इंग्लैंड चले गए और फिर सन 1920 में पहले ही प्रयास में उन्होंने आईसीएस की परीक्षा पास कर ली और वरीयता सूची में उन्होंने चौथा स्थान प्राप्त किया आईसीएस की परीक्षा में उन्हें सबसे ज्यादा अंक अंग्रेजी विषय में ही मिला था। चंद्र बोस के दिल दिमाग और उनके अंतरात्मा को स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद घोष के आदर्श ने कब्जा कर रखा है।

उनके आदर्श कभी भी किसी को भी अंग्रेजों की गुलामी करने की इजाजत नहीं देते थे। सुभाष चंद्र बोस को अपने देश भारत से बहुत प्रेम था। तथा वह हमेशा ही अपने देश भारत को आजाद देखना चाहते थे। और इन अंग्रेजन की हुकूमत से भारत को आजाद करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सन् 1921 को भारत के तत्कालीन सचिव वी. एस. मांटेग्यू को अपनी आईसीएस की नौकरी का त्यागपत्र का पत्र देकर जून 1921 में स्वदेशी अर्थात भारत लौट आते हैं।

राजनीतिक में प्रवेश | राजनीतिक जीवन :

Subhash Chandra Bose Par Nibandh : नेताजी का राजनीतिक जीवन काफी प्रभावशाली है। इसलिए हम सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध (Shubhash Chandra Bose Par Nibandh) में इनकी राजनीतिक जीवन की बात अवश्य ही करेंगे। जून 1921 में जब सुभाष चंद्र बोस स्वदेश अर्थात भारत वापसी सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में शामिल हो गए और चितरंजन दास के नेतृत्व में कार्य करना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ज्वाइन किया था। और शुरुआती दौर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस कोलकाता में कांग्रेस पार्टी के नेता नेताजी चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

सन 1922 ईस्वी में चितरंजन दास ने मोतीलाल नेहरू के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़कर अपनी एक अलग ही पार्टी बना ली जिसका नाम स्वराज पार्टी था। कांग्रेस पार्टी को छोड़ कर स्वराज पार्टी में जब वो अपनी रणनीति बना रहे थे। तभी नेताजी ने कलकत्ता के नौजवान युवा एवं छात्र-छात्राओं एवं किसानों के बीच अपनी एक अलग ही जगह बना ली थी। नेताजी एक सर्वश्रेष्ठ युवा नेता के रूप में उभर रहे थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने देश भारत से बहुत प्रेम करते थे। इसलिए वे जल्द से जल्द भारत को पराधीन भारत को स्वाधीन बनते देखना चाहते थे।

सुभाष चंद्र बोस के इन्हीं सब कर्म के कारण उन्हें अब सभी लोग उनके नाम से जानने लगे थे। और उनके द्वारा किए गए कार्यों की चर्चा कोने कोने में की जाने लगी थी। 20 जुलाई 1921 ई को पहली बार सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। इस समय महात्मा गांधी अंग्रेजी हुकूमत अर्थात अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रहे थे। जिसमें सुभाष चंद्र बोस ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। परंतु सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के विचारधारा का मेल नहीं खाता था। जहां महात्मा गांधी अहिंसा वादी विचारधारा वाले थे। वही सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा वादी विचारधारा से सहमत नहीं थे।

उनका मानना था कि, अपने देश को अंग्रेज़ी हुकूमत से आजाद कराने के लिए और अपने हक को पाने के लिए, अगर हिंसा भी करना पड़े तो हमें अवश्य ही उसका समर्थन करना चाहिए। ना कि अहिंसा वादी बनाकर चुप रहना चाहिए। क्योंकि आजादी स्वयं नहीं मिलती आजादी को छीनना पड़ता है। दादी सुभाष चंद्र बोस एक नई सोच और नई विचारधारा लेकर आए थे। जिससे उनकी चर्चा यूथ लीडर के रूप में हर जगह की जा रही थी। सन् 1928 ईस्वी में गुवाहाटी में कॉन्ग्रेस की एक बैठक का आयोजन किया गया था। जिसमे नए व पुराने मेंबर्स के बीच किसी बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था।

नए युवा नेता स्वयं के हिसाब से चलना चाहते थे, न की किसी बनाए गए पुराने नियम कानून पर। परंतु जितने भी पुराने नेता थे वे सभी अंग्रेजो द्वारा बनाए गए नियम पर चलना चाहते थे। 26 जनवरी सन 1931 ई को कोलकाता में सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रीय ध्वज फहराकर एक विशाल मूर्ति का नेतृत्व किया। तभी वहां के पुलिस प्रशासन ने सुभाष चंद्र बोस पर लाठी चार्ज कर उन्हें घायल कर जेल भेज दिया जब सुभाष चंद्र बोस जेल में थे।

तब गांधी जी ने अंग्रेज़ सरकार से सभी कैदियों को किया करवाने के लिए समझौता किया। परंतु अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह को रिहा नहीं किया। भगत सिंह को रिहा करने से उन्होंने साफ इनकार कर दिया था। परंतु भगत सिंह की फांसी माफ करने के लिए गांधी जी ने अंग्रेज सरकार से बात तो की थी। परंतु ऐसा कहा जाता है, कि बहुत नरमी के साथ उन्होंने अंग्रेज सरकार से बात की थी। लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही है।

इस मुद्दे पर गांधी जी ने जो अंग्रेज सरकार से समझौता किया है। वह इस समझौते को तोड़ दे लेकिन गांधी जी अपनी ओर से किए गए वादे को तोड़ना नहीं चाहते थे। वह समझौते को तोड़ने के लिए राजी नहीं थे। इसलिए अंग्रेज सरकार अपने स्थान पर खड़ी रही और भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी पर लटका दिया गया। कांग्रेस और गांधी के नियम से बहुत नाराज हो गए थे।

सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी :

सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के विचार आपस में नहीं मिलते थे परंतु उनका उद्देश्य एक ही था भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करना। इसलिए विचार भले ही ना मिले परंतु मकसद एक होने के कारण सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के नाम से सम्मानित किया था। परंतु जब 1938 इसमें सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। तभी उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया था। परंतु उनकी नीति गांधीवादी नीति के बिल्कुल भी अनुकूल नहीं थी।

सन 1939 ईस्वी में सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी के प्रतिद्वंद्वी को हराकर जीत हासिल कर ली। परंतु सुभाष चंद्र बोस के इस जीत से महात्मा गांधी बिल्कुल खुश नहीं थे। वह सुभाष चंद्र बोस की इस जीत में भी उनकी हर देखते थे और आते थे कि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस से अपना त्यागपत्र दे देंगे। गांधी जी के लगातार विरोध करने के कारण उन्हें गांधीवाद का विरोधी कहा जाने लगा था और इसी कारण सुभाष चंद्र बॉस ने स्वयं कांग्रेस के अध्यक्ष से त्यागपत्र दे दिया और कांग्रेस को छोड़ दिया। फिर कुछ दिन बाद यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध के बादल छा गए।

कारावास :

नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने सार्वजनिक जीवन में कुल 11 बार कारावास में जा चुके हैं। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में 6 महीने का कारावास हुआ था।

वैवाहिक जीवन | ऑस्ट्रिया में प्रेम विवाह :

सन 1934 ईस्वी में सुभाष चंद्र बोस के शारीरिक अस्वस्थ के कारण ऑस्ट्रिया अपना इलाज कराने गए हुए थे और 1934 में वह ऑस्ट्रिया में ही ठहरे हुए थे। इस समय उन्हें अपनी पुस्तक लिखने के लिए एक अंग्रेजी जानने वाली टाइपिस्ट की आवश्यकता थी तभी उनकी मुलाकात एक एमिली शेंकेल ( Emilie Schenkal ) नामक क्रिश्चियन महिला से होती है। एमिली के पिता एक जाने माने पशु चिकित्सक थे।

धीरे-धीरे सुभाष चंद्र बोस एमिली की और आकर्षित होने लगे और फिर एमिली और सुभाष चंद्र बोस, इन दोनों को एक दुसरे से प्रेम हो गया। अतः जर्मनी के सख्त कानून को देखते हुए दोनों ने सन 1942 ईस्वी में भारत कास्टिंग नामक स्थान पर पूरे हिंदू रीति रिवाज के साथ विवाह कर लिया। अर्थात सुभाष चंद्र बोस ने प्रेम विवाह किया था। सुभाष चंद्र बोस की एक बेटी भी थी जिसका नाम अनीता बोस था।

आजाद हिंद फौज का गठन :

आजाद हिंद फौज का गठन

Subhash Chandra Bose Par Nibandh : नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पूर्ण स्वराज की प्राप्ति के लिए फॉरवर्ड ब्लॉक नामक संगठन की स्थापना की थी। और भारत देश की आजादी के लिए एक सक्रिय कदम उठाया था। और अपने इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए नेताजी ने कांग्रेस दाल का त्याग कर दिया था। नेताजी के उत्साह और उनके अद्भुत सूझबूझ से अंग्रेजी सत्ता कांप उठी थी और इन्हें कारणों की वजह से इन्हें कई बार गिरफ्तार भी किया गया। परंतु इन्हें तुरंत मुक्त भी कर दिया जाता था।

एक बार की बात है, जब नेताजी को उनके ही घर में नजर बंद कर दिया गया था। तब यह पूरे देश में वेश बदलकर घूमते थे। और यह वेश बदलकर नजरबंदी से निकाल कर कबूल मार्ग से होते हुए जर्मनी पहुंच गए। उस समय जर्मनी के शासक हिटलर ने उनका सामना किया था। सन् 1942 ईस्वी में जापान की सहायता से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए आजाद हिंद फौज का गठन किया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित यह आजाद हिंद फौज बहुत ही हिम्मत वाली और माधुरी संगठन थी। जिससे ब्रिटिश की सत्ता कांप उठी थी।

नेताजी ने आजाद हिंद फौज के गठन द्वारा संपूर्ण गुलाम नागरिकों को उत्साहित किया था, और उनके अंदर यह बुलंद आवाज दी थी कि “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दुंगा”। यह गठन काफी शक्तिशाली गठन थी। जिसे अंग्रेज सैनी शक्ति को कई बार परास्त किया था। लेकिन बाद में जर्मनी और जापान के पराजय के कारण आजाद हिंद फौज भी विवश हो गया और विवशता के कारण इन्हें अपने हथियार डालने पड़े।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु :

महान नेता सुभाष चंद्र बोस अर्थात नेताजी की मृत्यु की खबर 23 अगस्त 1945 ई को टोक्यो आकाशवाणी द्वारा प्रकाशित की गई थीं।
ऐसा कहा जाता है, कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हवाई जहाज की दुर्घटना हो जाने के कारण हुई थीं। परंतु आज भी नेताजी के अन्य श्रद्धालुओ को इसके प्रति आशंका है। ऐसे व्यक्ति आज भी नेताजी को जीवित मानते हैं। इसी प्रकार नेताजी के जीवन का अंतिम अध्याय रहस्यमई बनी हुई हैं।

सुभाष चंद्र बोस के बारे में

सुभाष चंद्र बोस के नारे :

  • जय हिन्द।
  • दिल्ली चलो।

सुभाष चंद्र बोस के अनमोल वचन :

  • “असफलता कभी-कभी सफलता की स्तंभ होती है”।
  • “आजादी कभी दी नहीं जाती, बल्कि छिनी जाती है”।
  • “राजनीतिक सौदेबाजी का यह रहस्य है कि आप जितने मजबूत वास्तव में नहीं है उतना आपको राजनीतिक में दिखाना पड़ता है”।

सुभाष चंद्र बोस के विचार :

  • एक व्यक्ति अपने एक विचार के लिए मर सकता है लेकिन यह विचार उसके मरने के बाद एक हजार जन्म में अवतार लेता है।
  • तुम्हारा यह कर्तव्य है कि हम अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाए।
  • दुनिया का सबसे बड़ा अपराध अन्याय को सहन करना और अन्य होते देखना है।
  • सुभाष चंद्र बोस हमेशा अपने अनुभव से यह बताते हैं कि, आशा की कोई ना कोई किरण हमेशा आती है जो हमें हमारे लक्ष्य से कभी भटकने नहीं देती।
  • कर्म ही हमारा कर्तव्य और इस कर्तव्य के फल देने का हक भगवान को है हमें नहीं।

सुभाष चंद्र बोस की पुस्तक | Subhas Chandra Bose Books :

सुभाष चंद्र बोस द्वारा लिखी गई पुस्तक भारत का संघर्ष एक ऐसी पुस्तक है। जिसमें यह बताया गया है कि भारत के नागरिकों ने किन कठिनाइयों का सामना किया है। किस प्रकार से संघर्ष किया है। अपनी आजादी के लिए इसमें भारत की आजादी के लिए किए गए प्रयास और संघर्ष का विस्तृत रूप से व्याख्यान किया गया है। आजादी को पाने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने इसमें इसका विस्तृत वर्णन किया है। [Subhash Chandra Bose Par Nibandh]

सुभाष चंद्र बोस की जयंती

सुभाष चंद्र बोस की जयंती

23 जनवरी को पूरे भारत में सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाई जाती है। इस दिन विभिन्न प्रकार के संस्कृति कार्य सुभाष चंद्र बोस के याद में आयोजित किए जाते हैं। देश के बड़े नेता जैसे प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और अन्य प्रतिनिधि सभी मिलकर सुभाष चंद्र बोस बॉस को श्रद्धांजलि देते हैं और धूमधाम से सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाई जाती है।

निष्कर्ष

तो दोस्तों जैसे कि आपने देखा हमने सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्य आप तक पहुंचाने का प्रयास किया है। परंतु अगर हम उनके जीवन और उनके किए गए कार्यों को पढ़ते हैं। तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि, यह एक महान नेता थे। एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने भारत देश को आजादी दिलाने में अहम योगदान दिए हैं। यह एक ऐसे व्यक्ति थे। जिन्होंने सदैव सत्य का साथ दिया और अपने देश से निस्वार्थ प्रेम किया है। इन्हें एक यूथ लीडर के नाम से जाना जाता था।

यह सभी युवाओं के लिए प्रेरणादायक रहे हैं। जिन्होंने सभी को यह उपदेश दिया था कि कैसे हमें हमारे देश के प्रति अपने मन में प्रेम की भावना रखनी चाहिए। और सदैव कठिनाइयों का सामना हिम्मत से करना चाहिए। सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने कभी भी अपने घुटने नहीं टेके। उन्होंने अपने देश को आजाद करने के लिए सभी मुमकिन प्रयास किए। कई बार उन्हें जेल भी हुई उन पर लाठी चार्ज भी किए गए। परंतु वह कभी भी रुके नहीं। सदैव अपने देश के लिए एक हिम्मत के साथ खड़े रहे और उन्होंने अपने देश के लिए कई सारे योगदान दिए। कई सारे संगठन बनाएं। जिससे कि भारत पराधीन ना रहे बल्कि स्वाधीन हो सके।

सुभाष चंद्र बोस के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है।

Subhash Chandra Bose Par Nibandh : सुभाष चंद्र बोस के जीवन से हमे यह शिक्षा मिलती है कि, हमें किस प्रकार अपने देश से प्रेम करना चाहिए और कभी भी अंग्रेजों के सामने या किसी के भी सामने घुटने नहीं ठेकना चाहिए। एक हिम्मत और एक बहादुरी के साथ हर परिस्थिति का सामना करना चाहिए।और एक सच्चा देश भक्त बनना चाहिए। अपने कर्म और अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाना चाहिए।

FAQs: Frequently Asked Questions about Subhash Chandra Bose

नेताजी का जन्म किस परिवार में हुआ था?

नेताजी का जन्म हिंदू बंगाली परिवार में हुआ था।

नेताजी के कितने भाई बहन थे ?

नेताजी के कुल 14 भाई बहन थे जिसमें से 8 भाई और 6 बहन थी।

नेताजी अपने माता-पिता की कौन सी संतान थे?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने माता-पिता के नवीं संतान थे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन कब किया था?

सन 1942 ई को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का विवाह किस्से हुआ था ?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का विवाह ऑस्टिन महिला एमिली शेंकल (Emilie Schenkl) से हुआ था।

नेताजी की बेटी का क्या नाम था ?

नेताजी की बेटी का नाम अनीता बोस था।

सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक गुरु कौन थें?

सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक गुरु चितरंजन दास थे।

सुभाष चंद्र बोस के आध्यात्मिक गुरु कौन थे?

सुभाष चंद्र बोस के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी थे।

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